नोपेक्षा न च दाक्षिण्यं न प्रीतिर्न च सङ्गति ।
तथापि हरते तापं लोकानामुद्यतो घनः ॥
सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )
Sanskrit Subhashit with hindi meaning
बादल न तो अपने प्रति उपेक्षा या दयालुता की और न प्रीति या सहयोग की अपेक्षा करते हैं, लेकिन फिर भी जलवृष्टि के द्वारा ताप (गर्मी) को कम कर जनसामान्य की सहायता के लिये सदैव तत्पर रहते हैं ।
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