एके सत्पुरुषाः परार्थघटकाः स्वार्थं परितज्य ये
सामान्यास्तु परार्थमुद्यमभृतः स्वार्थाऽविरोधेन ये ।
तेऽमी मानुषराक्षसाः परहितं स्वार्थाय निघ्नन्ति ये
ये तु घ्नन्ति निरर्थकं परहितं ते के न जानीमहे ॥
(नीतिशतकम् )
Sanskrit Subhashit with hindi meaning
कवि कहता है कि वह तीन प्रकार के लोगों का वर्ग-नामकरण सरलता से कर लेता है ।
एक तो वे ‘सत्पुरुष‘ हैं जो दूसरों के हित के लिए स्वार्थ का ही त्याग कर जाते हैं । ऐसे जन वास्तव में बिरले ही होते हैं ।
दूसरे वर्ग में ‘सामान्य’ जन आते हैं, जो इस बात का ध्यान रखते हैं कि अपनी स्वार्थसिद्धि से दूसरों का अहित तो नहीं हो रहा है । अर्थात् वे स्वार्थ तथा परार्थ क बीच तालमेल बिठाकर चलते हैं । अधिसंख्य जन इसी प्रकार के होते हैं ।
तीसरे वे हैं जो इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि क्या उनकी स्वार्थपूर्ति अन्य लोगों के हित की कीमत पर तो नहीं हो रही है । यानी दूसरे का नुकसान हो भी रहा हो तो कोई बात नहीं अपना तो फायदा है । ऐसे लोगों की संख्या कम ही रहती है पर वे समाज में होते अवश्य हैं । और आज के भोगयुग में इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है । कवि इनको ‘मानुषराक्षस’ की संज्ञा देता है ।
और अंत में कवि कहता है कि उन लोगों को वह किस नाम से पुकारे जिनकी प्रवृत्ति परहित के विरुद्ध कार्य करने की रहती है भले ही इससे उनका कोई स्वार्थ सिद्ध न हो रहा हो । दुर्भाग्य से यह धरा ऐसे लोगों से मुक्त नहीं है ।
🙏🏻 जय श्री कृष्ण🙏🏻
Laxmi Shlok, Laxmi Mantra, Mantra, Shlok, Shloks, Jayatu Sanskritam, Jayatu Bharatam, Vadatu Sanskritam, Jayatu Jayatu Bharatam, Sanskrut, Sanskrit, Subhashit, Subhasit, Subhashitani, Subhashitam, Subhashita, Subhashit Sanskrit, Subhashitani in Sanskrit, Sanskritam, Sanskrut Quotes, Sanskrit Quotes,