सुभाषितानि

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान्रिपु ।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ॥

Sanskrit Subhashit – Subhashitani with hindi meaning

मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |

Laziness is the biggest enemy (Disease) in the body. There is no better friend than hard work (being industrious), one does not remain sad after doing it.

अर्थात इस दुनिया में केवल दो प्रकार के लोग सुखी होते हैं। एक बुद्धिहीन हैं और दूसरे बुद्धिमान। इन दोनों के बीच के सभी लोग बहुत ही पीड़ित होते हैं। गहनता से मनन करने पर यही समझ आता है कि बुद्धिहीन लोग समस्या को समझ नहीं पाते या समझना ही नहीं चाहते। इसलिए यह सब उनकी समझ से परे का विषय होता है। वे इसकी चिन्ता भी नहीं करते।

दूसरी ओर बुद्धिमान हर समस्या का हल ढूंढ निकालते हैं। जब तक उन्हें कोई उपयुक्त हाल न मिल जाए वे चैन से नहीं बैठते। वे किसी भी समस्या को हल्के में नहीं लेते बल्कि उन समस्याओं से जूझते हुए उनसे पार पा लेते हैं। इस प्रकार वे सुख के साधन तक पहुँच जाते हैं।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान्रिपु ।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ॥

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