संस्कृत श्लोक

न हीदृशं संवननं त्रिषु लोकेषु वर्तते ।
दया मैत्री च भूतेषु दानं च मधुरा च वाक ॥

Pramukh shlok with hindi meaning

अतः सदा ही दूसरों से सान्त्वनाप्रद शब्द बोले, कभी भी कठोर वचन न कहे । पूजनीय व्यक्तियों के सम्मान व्यक्त करे । दूसरों को यथासंभव दे और स्वयं किसी से मांगे नहीं ।

Connect an account(opens in a new tab)

Sanskrut | Sanskrit | Subhashit | Subhashitani | Subhashita | Yoga | Krishna | BhagvatGita | BhagavadGitaQuotes | Shloka | Mantras

%d