भगवद् गीता श्लोक

कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्‌ ।
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥10.17॥

श्रीमद्भगवद्गीता

Shrimad Bhagvadgita Shlok with hindi meaning

हे योगेश्वर! मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूँ और हे भगवन्‌! आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं?

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श्रीमद भगवत गीता के श्लोक अर्थ सहित

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